सच, बड़े काम का है षट्कर्म

सच, बड़े काम का है षट्कर्म

यह सच है कि कफ और पित्त दोषों के अलावा गले के बलगम और गले की अन्य पीड़ाओं से राहत दिलाने में  कुंजल क्रिया मददगार होती है।  यह काम नेति के साथ हो तो सोने पे सुहागा। पर कुंजल क्रिया भारत में अचानक ही चर्चा में है। अमेरिका में भारतीय मूल के कंप्यूटर प्रोफेशनल प्रमोद भगत ने हाल ही भारतीय टीवी चैनलों को बताया था कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बाद कुंजल क्रिया की बदौलत वे वेंटिलेटर पर जाने से बच गए। कोरोना मुक्त भी हो गए। यह चमत्कार बिहार योग विद्यालय के संस्थापक और अब समाधि ले चुके परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की सूक्ष्म ऊर्जा की वजह से हुआ। योगनिद्रा करते हुए स्पष्ट अनुभूति हुई कि स्वामी जी कह रहे हैं, कुंजल करो। ठीक हो जाओगे।

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यह बात किसी को अविश्वसनीय लग सकती है। पर यह भी सच है कि विशेष ऊर्जा के प्रभावों के सामने सारे तर्क बेकार हो जाते हैं। ऐसी ऊर्जा से संपन्न योगी किसी भी क्रिया, किसी भी चीज को माध्यम बनाकर कष्ट हर सकते हैं, अविश्वसनीय काम कर सकते हैं। उदाहरण भरे पड़े हैं। हालांकि स्वामी सत्यानंद चमत्कार तो नहीं दिखाते थे। पर कई शिष्यों के कष्ट इस तरह दूर कर दिए कि वे चमत्कार की तरह ही थे। जैसे, एक शिष्य को मस्तिष्क की सर्जरी होनी थी। पर वह जिद पर अड़ गया कि स्वामी जी के दर्शन के बिना सर्जरी नहीं करवाएगा। उसे स्वामी जी के पास ले जाया गया। स्वामी जी ने कहा, मत कराओ सर्जरी। ठीक हो जाओगे। आश्चर्यजनक ढंग से बिना सर्जरी के वह ठीक हो गया था। एक अन्य शिष्य को उच्च रक्तचाप था। ऐसे व्यक्ति के लिए शीर्षासन खतरनाक होता है। पर शीर्षासन करने से उसे दूसरे बड़े संकट से मुक्ति मिल सकती थी। स्वामी जी को पता चला तो उन्होंने उस शिष्य से कहा, करो शीर्षासन, इच्छित फल मिलेगा और वैसा हुआ भी। संतों की ऊर्जा ऐसे ही काम करती है। उस ऊर्जा के बिना कोई ऐसा करे तो लेने के देने पड़ जाएंगे।

वैसे, चमत्कार अपनी जगह। योग के ग्रंथों में भी स्पष्ट तौर से उल्लेख है कि कुंजल क्रिया कफ और पित्त रोग से मुक्ति दिलाने में मददगार है। हठयोग के षट्कर्म यानी छह प्रकार की क्रियाओं में धौति पहली क्रिया है। इसके तहत कई उप क्रियाएं हैं। उनमें एक है वमन धौति। वमन धौति के अभ्यास करने के भी तीन तरीके हैं। उन्हीं में एक है कुंजल क्रिया। इसका अभ्यास बहुत ही सरल है। खाली पेट में नमक मिला हुआ कुनकुना पानी कंठ तक पी लेना है। फिर मुंह में अंगुल अंदर तक ले जाकर सामने की तरफ झुककर वमन कर देना है। नियम से यह क्रिया करने से कफ व पित्त निकल जाता है। पाचन क्रिया दुरूस्त हो जाती है। दमा के मरीजों को अत्यधिक लाभ मिलता है।

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हालांकि इस साधारण क्रिया के लिए एहतियात बहुत जरूरी होता है। वरना कुंजल करते समय पेट का पानी बाहर निकलने के बदले फेफड़े में भी जा सकता है। भिलाई की एक महिला के साथ ऐसा हुआ था। शल्य चिकित्सा के बाद संकट टला था। कुछ वंदिशें हैं। जैसे, रक्तचाप, पेट या आमाशय के अल्सर, हार्निया और हृदय रोगियों को कुंजल नहीं करना चाहिए। इस क्रिया की पूर्णता के लिए जल नेति अनिवार्य रूप से करना चाहिए। यह कफ दोषों से मुक्ति दिलाने और फेफड़ों की सफाई में कुंजल क्रिया के साथ डबल इंजन का काम करता है। श्री भगत के रहस्योद्घाटन के बाद कुंजल के प्रति आकर्षण इतना बढ़ा है कि जिसे देखो वही इस क्रिया के बारे में विस्तार से जानने और उसे व्यवहार में लाने के लिए प्रयासरत है।

किसी के मन में सवाल हो सकता है कि यह इतना ही महत्वपूर्ण योगकर्म है तो भारत के योगियों ने इसके बारे में कुछ क्यों नहीं कहा? इसकी वजह यह हो सकती है कि चूंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले अन्य योगाभ्यासों से भी लगभग ऐसे नतीजे मिल जाते हैं, इसलिए षट्कर्म की इस क्रिया पर किसी का ध्यान नहीं गया होगा। भारत में कोविड-19 का संक्रमण फैलने के बाद देश के योगियों का फोकस रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपायों पर था। इसलिए विज्ञान की कसौटी पर बार-बार कसी गई नाड़ी शोधन या अनुलोम विलोम, कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी आदि प्राणायाम की क्रियाओं के अभ्यासों के साथ ही गिलोय और तुलसी के नियमित सेवन करने की सलाह दी जाती रही। प्रमुख योग संस्थानों में केवल कैवल्यधाम योग संस्थान के योगाचार्य ने कपालभाति के साथ नेति क्रिया करने की सलाह दी थी।

जहां तक वैज्ञानिक शोधों की बात है तो केवल कुंजल क्रिया पर शोध कार्य कम ही हुए हैं। षट्कर्म के कई आयामों पर कई शोध किए गए। उनमें कुंजल क्रिया के असर की स्थापित मान्यताओं को सही पाया गया। जबलपुर स्थित राजकीय आयुर्वेद कॉलेज एवं अस्पताल में कुंजल क्रिया पर अध्ययन किया गया था। इसकी अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि यह क्रिया कफ व पित्त दोषों से मुक्ति के लिए बेहद प्रभावशाली क्रिया है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्व विद्यालय के योग एवं स्वास्थ्य विभाग आदि ने षट्कर्म या शुद्धि क्रियाओं के विभिन्न आयामों पर अध्ययन किया तो समग्रता में षट्कर्म के साथ ही कुंजल और नेति की महत्ता का भी पता चला।

नेति, धौति, बस्ती, कपालभाति, नौलि और त्राटक षट्कर्म की छह क्रियाएं हैं। योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक पहली तीन क्रियाएं कफ, पित्त व आमाशय की समस्याओं से मुक्ति दिलाकर शरीर के विकारों को दूर करती है। दूसरी ओर कपालभाति, नौलि और त्राटक क्रियाएं मन-मस्तिष्क के प्रबंधन में अहम् भूमिका निभाती हैं। ये मस्तिष्क में उत्पन्न बीटा तरंगों को शांत करती हैं। इससे अल्फा, डेल्टा और थीटा तरंगे मन को स्वस्थ्य एवं निर्मल बनाती हैं। अवसाद से मुक्ति मिलती है। साथ ही उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और अन्य रोगों से लड़ने में मदद पहुंचती है। षट्कर्म के संपूर्ण प्रभावों पर आज के संदर्भ में नजर डालें तो कहना होगा कि कोई भस्त्रिका के साथ षट्कर्म साधना भी ठीक से कर ले तो मौजूदा संकट के लिहाज से बात बन जा सकती है।

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मजेदार बात यह कि हठयोग में इतना महत्वपूर्ण हो चुका षट्कर्म ऐतिहासिक रूप से योगशास्त्र का हिस्सा नहीं था। न तो हठयोग के प्रवर्तक गोरक्षनाथ ने और न ही राजयोग के प्रवर्तक महर्षि पतंजलि ने षट्कर्म को योगशास्त्र में स्थान दिया था। कुछ योग शास्त्रों और तंत्र शास्त्रों में षट्कर्म की अलग-अलग क्रियाओं की चर्चा जरूर की गई थी। पहली बार महर्षि घेरंड ने अपनी घेरंड संहिता में षट्कर्म को हठयोग का हिस्सा बनाया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

 

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